अर्जुन ने कहा,
कार्पण्यदोषोपहतस्वभावः पृच्छामि त्वां धर्मसम्मूढचेताः ।
यच्छ्रेयः स्यान्निश्चितं ब्रूहि तन्मे शिष्यस्तेऽहं शाधि मां त्वां प्रपन्नम् ॥
कायरता रुप दोष से नष्ट हुए स्वभाव वाला और धर्म का निर्णय करने में “मोहित” चित्त हुआ मैं आपसे पूछता हूँ, जो निश्चित की हुई हितकर बात हो वह मुझे बतलाईए। मैं आपका शिष्य हूँ, आपकी शरण में आए हुए मुझ दास को उपदेश दीजिए।
(श्रीमद्भगवद्गीता; अध्याय – २, श्लोक – ७)
सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज ।
अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः ॥
समस्त धर्मों (अधर्म सहित) को छोड़कर, सर्व कर्मों का संन्यास करके, मुझ एक की शरण में आ, अर्थात् मैं जो कि सबका आत्मा, समभाव से सर्व भूतों में स्थित, ईश्वर, अच्युत तथा गर्भ, जन्म, जरा और मरण से रहित हूँ, उस एक के इस प्रकार शरण हो। अभिप्राय यह है कि ‘मुझ परमेश्वर से अन्य कुछ है ही नहीं’ ऐसा निश्चय कर। तुझ इस प्रकार निश्चय वाले को मैं अपना स्वरुप प्रत्यक्ष कराके, समस्त धर्माधर्म बन्धनरुप पापों से मुक्त कर ‘मोक्ष’ दूँगा। इसलिए तू शोक न कर अर्थात् चिन्ता मत कर।
(श्रीमद्भगवद्गीता ; अध्याय – १८ , श्लोक – ६६)
गुरु कौन है ?
सत् बुद्धि से युक्त और गुणातीत (सत्व, रज और तम के परे) जो निरंतर भगवान् में मन वाले और जिन्होंने भगवान् में ही प्राणों को अर्पण कर दिया है। जिसके द्वारा चेतनतत्त्व सिद्ध है। अनन्यदर्शी (न अन्य) तथा जो अपने लिए योगक्षेम (अप्राप्त वस्तु की प्राप्ति का नाम योग है और प्राप्त वस्तु की रक्षा का नाम क्षेम है) सम्बन्धी चेष्टा भी नहीं करते क्योंकि वे जीने और मरने में भी अपनी वासना नहीं रखते, केवल भगवान् ही जिनके अवलम्बन हैं तथा जो भगवान् के प्रभाव को जानते हुए तथा गुण और प्रभाव सहित भगवान् का कथन करते हुए ही निरंतर संतुष्ट रहते हैं और वासुदेव में ही निरंतर रमण करते हैं। जो संपूर्ण भक्ति और ज्ञान दोनों से युक्त हैं।
क्या आपने ऐसे “गुरु” का दर्शन किया है ?
शिष्य कौन है ?
जिज्ञासु। कैसी जिज्ञासा ? ब्रम्ह/परमात्मा/भगवान् की जिज्ञासा। जिज्ञासु – जैसे स्वामी विवेकानंद! क्या आपने ऐसे “जिज्ञासु” का दर्शन किया है ?
केवल एक, उपरोक्त गुरु और शिष्य मिलकर समग्र विश्व के सोच-विचार और रहन-सहन पर सकरात्मक प्रभाव डाल सकते हैं, यह श्री रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद ने सिद्ध किया है! वर्तमान में – अनेक तथाकथित धर्मगुरु और उन सभी के असंख्य तथाकथित शिष्य (Actually Sales Force) सभी मिलकर भी क्या, कैसा और कितना प्रभाव हमारे अपने ही देश की सभ्यता, संस्कृति, व्यवस्था, आदि पर डालने में समर्थ हैं – स्वयं विचार करें।
जिज्ञासु को गुरु का मिलना ‘भाग्य’ की बात है। अन्यथा, जिज्ञासु को गुरु की तलाश छोड़ कर आज ही स्वयं को भगवान् को सौंप देना चाहिए! जैसे अर्जुन स्वयं को शिष्य और भगवान् श्री कृष्ण को गुरु के रुप में स्वीकार करते हुए भगवान् के शरणागत हो गया। यह “सौभाग्य” की बात है। जैसा कि भगवान् स्पष्ट कह ही नहीं रहे, बल्कि ऐसा करने वाले को मोक्ष प्राप्ति का वचन भी दे रहे हैं। भगवान् की शरण ग्रहण करते ही जिज्ञासु की पदोन्नति हो जाती है और वह ‘अर्थार्थी’ हो जाता है।
“जिज्ञासु और भगवान्” के बीच गुरु रुपी आवरण होता है। जिसमें उलझ जाने का भय रहता ही है। वर्त्तमान में, एक घंटे के प्रवचन में, तथाकथित धर्म-गुरु लगभग आधे घंटे तो गुरु की महिमा और आवश्यकता बताने में ही व्यतीत कर देते हैं। इतना ही नहीं, जिस साध्य भगवान् के लिए आपने उस धर्म-गुरु का शरण लिया है वह आपसे अपनी ही पूजा कराने में तनिक भी संकोच नहीं करता है। इसी का नाम “गुरु-पूजा” है। भगवान् तो फिर दूर ही हो जाते हैं।
“अर्थार्थी और भगवान्” के बीच कोई आवरण नहीं होता है। भगवान् ही गुरु और भगवान् ही साध्य होते हैं! यहाँ उलझे तो क्या ? स्वयं भगवान् ही सारे उलझन सुलझाते हैं ! भगवान् स्पष्ट कह रहे हैं, समस्त धर्मों (अधर्म सहित) को छोड़कर, सर्व कर्मों का संन्यास करके, मुझ एक की शरण में आ, अर्थात् मैं जो कि सबका आत्मा, समभाव से सर्व भूतों में स्थित, ईश्वर, अच्युत तथा गर्भ, जन्म, जरा और मरण से रहित हूँ, उस एक के इस प्रकार शरण हो। अभिप्राय यह है कि ‘मुझ परमेश्वर से अन्य कुछ है ही नहीं’ ऐसा निश्चय कर। “मोक्ष” की प्राप्ति निश्चित है !!
जय श्री कृष्ण !!
you can contact me
143 replies on “कृष्णं वंदे जगद्गुरुं !!”
Hi there this is kinda of off topic but I was wondering if blogs use WYSIWYG editors or if
you have to manually code with HTML. I’m
starting a blog soon but have no coding know-how so I
wanted to get guidance from someone with experience.
Any help would be enormously appreciated!
Nice blog! Is your theme custom made or did you download it from
somewhere? A design like yours with a few simple adjustements would really make my blog shine.
Please let me know where you got your theme. Appreciate it
In truth, there would an arbitrage opportunity employing the odds of each outcomes by the very same sports
book.
I like this post, enjoyed this one thank you for posting.
Feel free to visit my web-site – Nitro Strive Nitric Oxide Booster
This is a great tip especially to those fresh to the blogosphere.
Brief but very precise info? Thanks for sharing this one.
A must read article!
my homepage http://www.fotosombra.com.br