जीवन की महत्ता और सफलता उसकी आत्मिक प्रगति पर निर्भर है, यह विश्वास मन में रखना चाहिए व नित्य सुदृढ़ बनाना चाहिए। भौतिक सफलताएं तो उतनी ही देर आनन्द देती हैं, जब तक कि उनकी प्राप्ति नहीं हो जाती। मिलते ही आनन्द समाप्त हो जाता है व और अधिक के लिए व्याकुलता, बेचैनी आरंभ हो जाती है। जो मानव जीवन का श्रेष्ठतम सदुपयोग कर उस आनन्द की प्राप्ति के इच्छुक हैं, जिसके लिए यह जन्म मिला है, उन्हें आत्मिक प्रगति के लिए तत्पर होना चाहिए और उसके दोनों आधारों उपासना और साधना का अवलम्बन लेना चाहिए।
मनुष्य में जो असीम एवं अपरिमित शक्तियाँ भरी पड़ी हैं उनके अस्तित्व में विश्वास करने और तद्नुरूप उन्हें हस्तगत कर लेने की योग्यता-क्षमता को प्रतिभा के नाम से जाना जाता है। यह न तो जन्मजात उपलब्धि है और न किसी का दिया हुआ वरदान-आशीर्वाद। भाग्यवश मिला हुआ आकस्मिक संयोग-सुयोग भी नहीं कहा जा सकता। वह स्व उपार्जित ऐसी विलक्षण सम्पदा है, जिसके सहारे जीवन की प्रतिकूल दीखने वाली परिस्थितियों को अनुकूल बनाया जा सकता है।
जिन व्यक्तियों ने अपनी प्रसुप्त प्रतिभा को उपयोगी दिशा में लगाया है, उसके सत्परिणाम उन्हें हाथों हाथ मिलते देखे गये हैं। परिस्थितियाँ कितनी विपन्न और विषम क्यों न बनी रही हों, पर धुन के धनी लोगों ने जीवन की महत्वपूर्ण सफलताएँ अर्जित कर दिखाई हैं।
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