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धर्म ध्यान और ज्ञान पवित्र आत्मा

मैं एक पवित्र आत्मा हूं

जब कहीं भीआत्मा को जानने की जिज्ञासा होती है । तो हमेशा यह अच्छी तरह समझना चाहिए कि संसार में आत्मा नाम की शक्ति अगर है तो वह अनंत रूप में सर्वत्र होकर भी एक है ठीक उसी तरह जैसे पानी में नमक की मात्रा मिलने पर सर्वत्र एक होती है । आत्मा प्रत्येक जीव में विद्यमान है । जहां भीआपकी सोच जाती है, वहां तक आत्मा का एक रूप विराजमान है । अब लोग बाग़ कहते हैं इस व्यक्ति में बुरी आत्मा का प्रवेश हो गया है ऐसा नहीं होताआत्मा तो एक ही थी पर जिसमें बुरी आत्मा का प्रवेश होना बता रहे हैं । उस जगह की कर्म ही बुरे थे और दोस आत्मा के दिया जाता है । आत्मा सदैव पवित्र है , निर्मल है , सर्वव्यापी है , आत्मा मेंकोई भेद नहीं है । भेद की दृष्टि से अगर देखा जाएतो जीवसंसार में अनंत प्रकार के पाए जाते हैं और उनके कर्म भी अनंत प्रकार के होते हैं । जिसके परिणाम स्वरूप जो मनुष्य को बुरा लगता है जिसे दूसरों का अहित होता है , वह जीव कठोर दुष्ट प्रवृत्ति का कहलाता है । ऐसे हीअलग-अलग तरह  के जीवन में विभिन्न प्रकार के स्वभाव पाए जाते हैं । जो उन्हें भला और बुरा बनाते हैं । तो हमेशा कोशिश यह करोकि आपकी आत्मा हमेशा पवित्र बनी रहे हमेशा सोच यह बनाई रखो …..

मैं एक पवित्र आत्मा हूं । मुझे अगर पहचाना है तो उस दीपक को देखो जिसके नीचे हमेशा अंधेरा रहता है । जो खुद जलकर दुनिया को प्रकाशित करता है और जो इससे आकर्षित होकर इसे जानना चाहते हैं, वह खुद इसमें (कीट पतंग की तरह) स्वाहा हो जाते हैं और जो इसकी सेवा ( तेल या घी डालना) करते हैं मैं हमेशा उन्हें प्रकाशित करता हूं

मैं आत्मा ही तो हूं , जो तुम्हारे बाहर और भीतर सर्वत्र सदैव विद्यमान रहती है । मैं ही गुरु हूं , मैं ही देवता हूं और मैं ही भगवान हूं । सर्वत्र मेरे होते हुए भी जीव दुखी है । इसकी वजह उस जीव का अज्ञान है । जो प्राणी मात्रा में भेद करता है । अपना और पराया समझता है , जब कि मै सदैव एक ही हू॔। दूसरे का बुरा करना मेरा ही बुरा है । दूसरे का भला करना वह भी मेरा ही  है । यह तो जीव को समझना है कि उसे क्या करता है । मैं आत्मा हूं । अजर हूं । अमर हूं । मेरा ना कोई बुरा कर सकताऔर ना ही भला , जीव अपने कर्मों से ही अपनी पोटली सर पर रखकर घूमता फिरता है । इसमें मेरा कोई दोस नहीं । ईश्वर कहते हैं , संसार से उबरने काअगर कोई रास्ता है तो वह सिर्फ सेवा करना है । इसके अलावा कोई रास्तामेरे तक नहीं पहुंच पाता है । बिना सेवा के मनुष्य यूं ही मेरे ब्रह्म के जाल में फंसा रहता है ।

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