जीव और जीवन में अंतर
Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!जीव और जीवन में अंतर देखना असामान्य है क्योंकि जीव सर्व्याप्त है एक स्वरूप है एक होते हुए भी अन्य स्वरूपों में विद्यमान है ठीक वैसे ही जैसे बिजली एक है पर उसकी कार्यप्रणाली अनेक रूपों में पाई जाती है अगर आप बिजली से पंखा चलाना चाहे तो चलता है लाइट जलाना चाहो तो जलती है रेल गाड़ी चलाना चाहो तो चलती है पता नहीं कितने ही कार्य करती है पर स्वरूप तो एक ही है चाहे उसको छोटा बना कर देख लो और चाहे उसका विराट रूप देख लो ऐसा ही कुछ जीव है
जीव क्या है ?
जीव को हम प्राण भी कहते हैं और प्राण ही आत्मा का स्वरूप है जीव के बिना वनस्पति हरि रह नहीं सकती और जीव के बिना किसी भी प्राणी में प्राण ना होता पूरे ब्रह्मांड में जो चेतना नजर आती है वहां सर्वत्र जीव विद्यमान रहता है जीव का एक स्वरूप होते हुए भी विभिन्न भाती-भाती के स्वरूप में पाया जाता है अपने आप को समझने के लिए प्रत्येक जीव को समझना जरूरी है
जीवन क्या है ?
जी + वन थोड़ा समझने में आसानी हो इसके लिए मैं जीवन को दो टुकड़ों में करके समझाने की कोशिश करता हूं वन के बारे में जब हम विचार करते हैं तो साधारण सी एक पिक्चर दिमाग में आ ही जाती है कि वहां वनस्पति होगी जंगली जानवर होंगे जिनमें कई खतरनाक भी होंगे डरावने भी होंगे साथ ही साथ बल का जो सौंदर्य है वह भी दिमाग में आ जाते हैं सरल भाषा में जब विचार करते हैं तो जीवन जी की बनाई हुई एक संरचना है वह हमेशा अपने भाव के अनुकूल परिभाषाएं बनाता है और क्या आता है जहां उसको सरलता महसूस हो वह वैसे ही संरचना तैयार करता है जिसको हम इंसानों में समाज कुटुंब कबीला संप्रदाय इत्यादि को देखते हैं इन सब को मिलाकर एक राष्ट्र का निर्माण होता है बस यही जीवन है
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