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भगवान के आगे दीपक जलाने का महत्व

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Ramseva Trust: जब हम किसी देवता का पूजन करते हैं तो सामान्यतः दीपक जलाते हैं। दीपक किसी भी पूजा का महत्त्वपूर्ण अंग है । हमारे मस्तिष्क में सामान्यतया घी अथवा तेल का दीपक जलाने की बात आती है और हम जलाते हैं। जब हम धार्मिक ग्रंथों के अनुसार भिन्न-भिन्न देवी-देवताओं की साधना अथवा सिद्धि के मार्ग पर चलते हैं तो दीपक का महत्व विशिष्ट हो जाता है।
1. दीपक कैसा हो, उसमे कितनी बत्तियां हों , इसका भी एक विशेष महत्त्व है। उसमें जलने वाला तेल व घी किस-किस प्रकार का हो, इसका भी विशेष महत्त्व है। उस देवता की कृपा प्राप्त करने और अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए ये सभी बातें महत्वपूर्ण हैं।

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2. विधि-विधान से पूजा

लेकिन हिन्दू शास्त्रों के अनुसार आज भी पूर्ण विधि-विधान के साथ पूजा करने को महत्व दिया जाता है। पूजा के लिए सही सामग्री, स्पष्ट रूप से मंत्रों का उच्चारण एवं रीति अनुसार पूजा में सदस्यों का बैठना, हर प्रकार से पूजा को विधिपूर्वक बनाने की कोशिश की जाती है।

3. कैसे जलाएं दीपक

पूजा में ध्यान देने योग्य बातों में से ही एक है दीपक जलाते समय नियमों का पालन करना। पूजा में सबसे अहम है दीपक जलाना। इसके बिना पूजा का आगे बढ़ना कठिन है। पूजा के दौरान और उसके बाद भी कई घंटों तक दीपक जलते रहना शुभ माना जाता है।

4. दीपक का महत्व

यह दीपक रोशनी प्रदान करता है। रोशनी से संबंधित शास्त्रों में एक पंक्ति उल्लेखनीय है – असतो मा सद्गमय। तमसो मा ज्योतिर्गमया। मृत्योर्मामृतं गमय॥ ॐ शांति शांति शांति (स्रो: बृहदारण्यक उपनिषद् 1.3.28)।

5. अंधकार दूर करता है

उपरोक्त पंक्ति में दिए गए ‘तमसो मा ज्योतिर्गमया’ का अर्थ है अंधकार से उजाले की ओर प्रस्थान करना। आध्यात्मिक पहलू से दीपक ही मनुष्य को अंधकार के जंजाल से उजाले की किरण की ओर ले जाता है। इस दीपक को जलाने के लिए तिल का तेल या फिर घी का इस्तेमाल किया जाता है।

6. दीपक और घी

परन्तु शास्त्रों में दीपक जलाने के लिए खासतौर से घी का उपयोग करने को ही तवज्जो दी जाती है। जिसका एक कारण है घी का पवित्रता से संबंध। घी को बनाने के लिए ही गाय के दूध की आवश्यकता होती है। गाय को हिन्दू मान्यताओं के अनुसार उत्तम दर्जा प्राप्त है।

7. गाय के दूध से बना घी

गाय को मां का स्थान दिया गया है और उसे ‘गौ माता’ कहकर बुलाया जाता है। यही कारण है कि उसके द्वारा दिया गया दूध भी अपने आप ही पवित्रता का स्रोत माना गया है। इसीलिए उससे बना हुई घी भी सबसे पवित्र माना गया है। घी के अलावा तिल का तेल से दीपक जलाया जाता है। कुछ लोगों द्वारा अंधकार दूर करने के लिए मोमबत्ती का इस्तेमाल भी किया जाता है।

8. मोमबत्ती का इस्तेमाल वर्जित

किन्तु शास्त्रों में मोमबत्ती का इस्तेमाल वर्जित माना गया है। कहते हैं मोमबत्ती एक ऐसी वस्तु है जो केवल आत्माओं को अपने उजाले से निमंत्रण देती है। इसको जलाने से घर में नकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है। इसीलिए इसके इस्तेमाल से बचना चाहिए मनुष्य को।

9. आध्यात्मिक कारण

पूजा के समय घी का दीपक उपयोग करने का एक और आध्यात्मिक कारण है। शास्त्रों के अनुसार यह माना गया है कि पूजन में पंचामृत का बहुत महत्व है और घी उन्हीं पंचामृत में से एक माना गया है। इसीलिए घी का दीपक जलाया जाता है।

10. अग्नि पुराण में वर्णन

अग्नि पुराण में भी दीपक को किस पदार्थ से जलाना चाहिए, इसका उल्लेख किया गया है। इस पुराण के अनुसार, दीपक को केवल घी या फिर तिल का तेल से ही जलाना चाहिए। इसके अलावा किसी भी अन्य पदार्थ का इस्तेमाल करना अशुभ एवं वर्जित माना गया है।

11. तेल से अधिक महत्व घी को

शास्त्रों में दीपक जलाने के लिए तेल से ज्यादा घी को सात्विक माना गया है। दोनों ही पदार्थों से दीपक को जलाने के बाद वातावरण में सात्विक तरंगों की उत्पत्ति होती है, लेकिन तेल की तुलना में घी वातावरण को पवित्र रखने में ज्यादा सहायक माना गया है।

12. घी की पवित्रता

इसके अलावा यदि तेल के इस्तेमाल से दीपक जलाया गया है तो वह अपनी पवित्र तरंगों को अपने स्थान से कम से कम एक मीटर तक फैलाने में सफल होता है। किन्तु यदि घी के उपयोग से दीपक जल रहा हो तो उसकी पवित्रता स्वर्ग लोक तक पहुंचने में सक्षम होती है।

13. बुझने के बाद भी असर

कहते हैं कि यदि तिल का तेल के उपयोग से दीपक जलाया जाए तो उससे उत्पन्न होने वाली तरंगे दीपक के बुझने के आधे घंटे बाद तक वातावरण को पवित्र बनाए रखती हैं। लेकिन घी वाला दीपक बुझने के बाद भी करीब चार घंटे से भी ज्यादा समय तक अपनी सात्विक ऊर्जा को बनाए रखता है।

14. शारीरिक चक्रों से संबंध

दीपक को घी से ही जलाने के पीछे मानवीय शारीरिक चक्रों का भी महत्व है। ऐसा माना जाता है कि मानव शरीर में सात चक्रों का समावेश होता है। यह सात चक्र शरीर में विभिन्न प्रकार की ऊर्जा को उत्पन्न करने का कार्य करते हैं। यह चक्र मनुष्य के तन, मन एवं मस्तिष्क को नियंत्रित करते हैं।

15. कौन है अधिक सर्वश्रेष्ठ

यदि तिल का तेल से दीपक जलाया जाए तो यह मानव शरीर के मूलाधार एवं स्वाधिष्ठान चक्र को एक सीमा तक पवित्र करने का कार्य करता है। लेकिन यदि दीपक घी के इस्तेमाल से जलाया जाए तो यह पूर्ण रूप से सात चक्रों में से मणिपुर तथा अनाहत चक्र को शुद्ध करता है।

16. शारीरिक नाड़ियां

इन सात चक्रों के अलावा मनुष्य के शरीर में कुछ ऊर्जा स्रोत भी होते हैं। इन्हें नाड़ी अथवा चैनेल कहा जाता है। इनमें से तीन प्रमुख नाड़ियां है – चंद्र नाड़ी, सूर्य नाड़ी तथा सुषुम्ना नाड़ी। शरीर में चंद्र नाड़ी से ऊर्जा प्राप्त होने पर मनुष्य तन एवं मन की शांति को महसूस करता है।

17. सूर्य एवं चंद्र नाड़ी

सूर्य नाड़ी उसे ऊर्जा देती है तथा सुषुम्ना नाड़ी से मनुष्य अध्यात्म को हासिल करता है। मान्यता के अनुसार यदि तिल के तेल के उपयोग से दीपक को जलाया जाए तो वह केवल सूर्य नाड़ी को जागृत करता है। लेकिन घी से जलाया हुआ दीपक शरीर की तीनों प्रमुख नाड़ियों को जागृत करता है।

18. वैज्ञानिक कारण

दीपक जलाने के लिए घी का उपयोग करने के पीछे केवल शास्त्र ही नहीं विज्ञान भी ज़ोर देता है। शास्त्रीय विज्ञान में अहम माने जाने वाले वास्तु शास्त्र विज्ञान के अनुसार घी से प्रज्जवलित किया हुआ दीपक अनेक फायदों से पूरित होता है। ज्योतिष के अनुसार दीपक को सकारात्मकता का प्रतीक व दरिद्रता को दूर करने वाला माना जाता है।

19. कुंडली दोष के उपाय

जन्म-कुंडली के अनुसार दोषों को दूर करने के लिए अनेक उपायों में से एक होता है घी द्वारा जलाया हुआ दीपक। ऐसी भी मान्यता है कि घर में घी का दीपक जलाने से वास्तुदोष भी दूर होते हैं। क्योंकि यह घर से नकारात्मक ऊर्जा को दूर कर सकारात्मक ऊर्जा को लाने की काम करता है।

20. प्रदूषण को भी कम करता है

कहते हैं कि गाय के घी में रोगाणुओं को भगाने की क्षमता होती है। यह घी जब दीपक की सहायता से अग्नि के संपर्क में आता है तो वातावरण को पवित्र बना देता है। इसके जरिये प्रदूषण दूर होता है। इसी तरह के गुण तिल के तेल में भी पाये जाते हैं.,यह भी आक्सीजन की वृद्धि करता है, माना जाता है कि दीपक जलाने से पूरे घर को फायदा मिलता है। चाहे उस घर का कोई व्यक्ति पूजा में सम्मिलित हो या ना हो, उसे भी इस ऊर्जा का लाभ प्राप्त होता है!
आपको बताते है कि दीपक को जलाने के विभिन्न प्रकार तरीके जिससे आपके इष्टदेव खुश होंगे और घर में सुख-समृद्धि का स्थायी वास भी होगा।
भगवान गणेश की कृपा पाने के लिए तीन बत्तियों वाला घी का दीपक जलानें से मनोकामनायें पूर्ण होती है।
यदि आप मां लक्ष्मी की आराधना करते हैं और चाहते हैं कि उनकी कृपा आप पर बरसे तो उसके लिए आपको सातमुखी तिल के तेल का दीपक जलायें।
देवी के हमेशा तिल के तेल ही दिपक जलाना चाहिए, साथ में गाय के घी का भी जलाना चाहिए, दाऐ तरफ घी का और बांऐ तरफ तिल के तेल का दीपक रखना चाहिए!
यदि आपका सूर्य ग्रह कमजोर है तो उसे बलवान करने के लिए, आदित्य ह्रदय स्त्रोत का पाठ करें और साथ में तिल के तेल का दीपक जलायें।
आर्थिक लाभ पाने के लिए आपको नियमित रूप से शुद्ध देशी गाय के घी का दीपक जलाना चाहिए।
शत्रुओं व विरोधियों के दमन हेतु भैरव जी के समक्ष तिल के तेल का दीपक जलाने से लाभ होगा।
शनि की साढ़ेसाती व ढैय्या से पीड़ित लोग शनि मन्दिर में शनि स्त्रोत का पाठ करें और तिल के तेल का दीपक जलायें।
पति की आयु व अरोग्यता के लिए महुये के तेल का दीपक जलाने से अल्पायु योग भी नष्ट हो जाता है।
शिक्षा में सफलता पाने के लिए सरस्वती जी की आराधना करें और दो मुखी घी वाला दीपक जलाने से अनुकूल परिणाम आते हैं।
मां दुर्गा या काली जी प्रसन्नता के लिए एक मुखी दीपक गाय के घी में और एक मुखी तिल के तेल का जलाना चाहिए।
भोले बाबा की कृपा बरसती रहे इसके लिए आठ या बारह मुखी तिल के तेल वाला दीपक जलाना चाहिए।
भगवान विष्णु की प्रसन्नता के लिए सोलह बत्तियों वाला गाय के घी का दीपक जलाना लाभप्रद होता है।
हनुमान जी की प्रसन्नता के लिए तिल के तेल आठ बत्तियों वाला दीपक जलाना अत्यन्त लाभकारी रहता है।
पूजा की थाली या आरती के समय एक साथ कई प्रकार के दीपक जलाये जा सकते हैं।
संकल्प लेकर किया गये अनुष्ठान या साधना में अखण्ड ज्योति जलाने का प्रावधान है।
अग्नि पुराण, ब्रम्हवर्तक पुराण, देवी पुराण, उपनिषदों तथा वेदों में गाय के घी तथा तिल के तेल से ही दीपक जलाने का विधान है, अन्य किसी भी प्रकार के तेल से दिपक जलाना निषेध है!
आज कल सरसों के तेल में दिपक जलाने की प्रथा है, लेकिन सरसों  तेल नाम किसी भी पुराण आदि नही है, क्योंकि सरसों बहार से आया हुआ बीज है, यह भारत की संस्कृति से अलग है, इसका प्रारंभ काल, मात्र 85 वर्ष ही है और इस बीज की उत्पत्ति, अग्रेजी शासन काल में ही हुई थी, अतः यह औषधियों एवं धार्मिक कार्यो के लिए उचित नहीं है!!
अतः साधक अपने विवेक तथा साधना सिद्धि के अनुसार उत्तरदायी है!!

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By Shri Mukesh Dass

Since 1997, the National Bird Peacock Dana water is being provided by Shri Ramchandra Seva Dham Trust. The only trust of Nawalgarh is where the national bird is served and this is the most peacock found.

19 replies on “भगवान के आगे दीपक जलाने का महत्व”

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