प्रत्येक व्यक्ति को सत्यता का ज्ञान होना बहुत जरूरी है भांति भांति का खान पान व भांति-भांति के वस्त्र इत्यादि पहनने से क्या वह परम सत्य अलग-अलग रूपों में हो सकता है यह सत्यता का ज्ञान होना अति जरूरी है इसके लिए चाहिए कि हमारी सरकार सभी बच्चों के लिए स्पेशल पाठ्यक्रम जो बच्चों में प्रेम और सत्यता का ज्ञान जगे आज का समय कुछ इस प्रकार हो गया है मेरी डफली मेरा ही राज हमारा हिंदू समाज जो सनातनी विचारधारा का है वह ईश्वर को कोई माताजी के रूप में तो कोई शंकर के रूप में ज्यादातर सनातनी अपने माता-पिता के रूप में उसे परम ईश्वर को मानते हैं यहां तक तो बात अच्छी थी किंतु कुछ संप्रदाय विशेष स्वरूप को मानते ही नहीं वे तो निराकार को ही पूजना चाहते हैं क्या यह संभव है साकार के बिना निराकार पूजा जा सके जो लोग साकार को नहीं मानते वह कैसे निराकार को समझ पाएंगे जब तक प्रत्येक जीव में आपसी प्रेम की उत्पत्ति नहीं होगी जीव हमेशा उसे निराकार स्वरूप परमात्मा से अत्यंत दूर चला जाता है हमारे वेद पुराण हमें हमेशा ज्ञान देते हैं सो हम कहने का मतलब जो कुछ भी है वह हम स्वयं है यह भाव हमें शिक्षा देता है कि जब एक प्रकृति है एक आसमान है एक प्राण वायु है यहां तक की जीवात्मा का स्वरूप भी एक ही है समंदर के पानी को अगर सैकड़ो तालाबों में भर दिया जाए तो पानी का संख्या स्वरूप बदल जाएगा परंतु पानी सर्वत्र एक स्वरूप में ही मिलेगा
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